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Neet UG Success Story:- हाल ही में जारी हुए नीट के परिणाम में नागौर जिले के फिड़ौद गांव की बेटी निरमा पुत्री मौजीराम काला ने देश में 11 रैंक हासिल की है। सामान्य से भी कम आर्थिक स्थिति से गुजर रहे इस परिवार के निरमा का परिणाम सुनते ही खुशी के आंसू न निरमा के संघर्ष को लेकर बातचीत की तो सामने आया कि उसकी इस सफलता में सबसे बड़ी भूमिका पिता मौजीराम काला की है। निरमा ने बिना किसी कोचिंग के यह मुकाम पाया है। लेकिन वह बताती है कि पिता के रूप में भगवान से उसके साथ रहे। बेटी पढ़कर कामयाब बने इसलिए खुद बकरियां चराते, पैसों की जरूरत हुई तो बिना किसी को बताए कर्ज लिया। गांव के कच्चे रास्तों पर कीचड़ होता तो निरमा को कंधों पर उठाकर रास्ते पार करवाते। लेकिन कभी स्कूल नहीं छूटने दो। bmsprmsa.in आपके सामने उस पिता की कहानी लाया है जो खुद पढ़े लिखे नहीं है लेकिन बेटी पदार्थ के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। पढ़िए पूरी कहानी, बेटी तिरमा को जुबानी…..
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चार बहन, एक भाई, पिता के लिए सब बराबर
निरमा पढ़ाई के साथ घरेलू काम काज और बकरियां चराने में सहयोग करती रही। लेकिन पिता हमेशा कहते कि तुम बस पढ़ा करो, बाकी में संभाल लूंगा। निरमा अब न्यूरोलॉजिस्ट बनना चाहती है। रसोई और कमरे के संयुक्त रुप से छोटे से घर में चार बहनों व एक भाई के साथ पिता ने दुनिया से लड़ते हुए इस मुकाम तक पहुंचाया है। सबको बराबर माना।
बेटियों को कोई कम बताता तो लोगों से कई बार लड़ गए पिता
निरमा बताती है कि पिता ने मुझे अंगुली पकड़कर चलाना सिखाया जो आज तक साथ चल रहे हैं। शायद उनकी कहानी बताने के लिए शब्द पूरे न हो ।
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पिताजी ने यह सब कुछ किया जो कुछ लोगों के लिए करना मुश्किल है। न जाने कितने लोगों से बेटियां महान होती है, इस बात पर झगड़ लिए होंगे। पिता ने कभी गुरु की तरह मार्गदर्शन दिया तो कभी दोस्त की तरह संवला प्राइमरी से लेकर अब तक पिताजी ने मुझे स्कूल छोड़ने के लिए अपने कई जरूरी कामों को छोड़ दिया। कई दफा बारिश हुई तो कंधों पर बिठाकर स्कूल पहुंचाया। क्योंकि मार्ग कच्चा है।
परिवार खेती पर निर्भर है और 40-50 बकरियां भी है। में कई बार बकरियां चराने में सहयोग करतो तो पिताजी से कहकर भेज देते कि बेटा घर चलो मैं जल्द ही घर आ रहा हूं। उनकी आंखों में मुझे लेकर जो चमक थी, उसी से पढ़ने के लिए उर्जा मिलती। इससे अब सफलता प्राप्त हुई है।
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परिवार कई बार मुश्किल घड़ी से गुजरा पर पिता ने आंच नहीं आने दी
निरमा ने जब दसवीं पास को तो ऐम एकेडमी संचालक धनराज सोलकी व गुरुजनों ने हाई लेवल की पढ़ाई के बारे में समझाया। उस दिन से नीट की तैयारी शुरू की। परिणाम आया तो निरमा का सम्मान किया। निरमा बताती है कि पिताजी को आंखों में खुशी के आंसू आ गए थे। ये आंसू पिता के पिछले 15 साल से हम बहनों के लिए किए गए संघर्ष का संकेत थे। एक दो बार परिवार मुश्किल पड़ी से भी गुजरा था। मगर यह अच पिता ने बहनों तक नहीं पहुंचने दो।
परिवार ने वह दिन भी देख जब पैसे नहीं थे पर पिता थे। उन्होंने अपने स्तर पर सब कुछ सही कर लिया लेकिन यह आज तक नहीं बताया कि पैसे की व्यवस्था कहाँ से करते थे। केवल यही कहते कि मेहनत करो और एक दिन सफल होकर दिखाओ। आखिर उनका सपना सच कर दिखाया। यह कहते हुए निम्मा भावुक हो गई।